परिवर्तन संसार का नियम है। समय के साथ संसार में हर चीज़ परिवर्तन के नियम का पालन करती है।
सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूँ, लेकिन झूठ हमेशा दावा करता है की सिर्फ मैं ही सत्य हूँ।
नर्क के तीन द्वार हैं वासना, क्रोध और लालच।
किसी का अच्छा ना कर सको तो बुरा भी मत करना, क्योंकि दुनिया कमजोर है लेकिन दुनिया बनाने वाला नहीं।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं।
जो चीजें हमारे दायरे से बाहर हो, उस में समय गंवाना मूर्खता ही होगी।
ना तो यह शरीर तुम्हारा है और ना ही तुम इस शरीर के मालिक हो।
यह शरीर पंच तत्वों से बना है आग जल, वायु, पृथ्वी और आकाश 1 दिन यह शरीर इन्हीं पंचतत्वों में विलीन हो जायेगा।
ज़िंदगी में हम कितने सही हैं और कितने गलत है, यह केवल दो लोग जानते हैं।
एक परमात्मा और दूसरी हमारी अंतरात्मा परिवर्तन ही संसार का नियम है।
एक पल में हम करोड़ों के मालिक हो जाते हैं और दूसरे पल ही हमें लगता है की
हमारे पास कुछ भी नहीं है।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है।
भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है।
जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तक नष्ट हो जाता है।
जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
जैसे अंधेरे में प्रकाश की ज्योति जगमगाती है।
ठीक उसी प्रकार से सत्य की चमक भी कभी फीकी नहीं पड़ती,
इसलिए व्यक्ति को सदैव सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए।
मनुष्य जीस रूप में ईश्वर को याद करता है। ईश्वर भी उसे उसी रूप में दर्शन देते हैं।
अपने आप को भगवान के प्रति समर्पित कर दो, यही सबसे बड़ा सहारा है।
जो कोई भी इस सहारे को पहचान गया है वह डर, चिंता और दुखों से आज़ाद रहता है।
इंद्रियों की दुनिया में कल्पना सुखों की प्रथम शुरुआत है और अंत भी जो दुख को जन्म देता है।
मन की गतिविधियों, होश, स्वास्थ और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है।
और लगातार तुम्हें बस एक साधन की तरह प्रयोग करके सभी कार्य कर रही है।
बुरे कर्म करने वाले सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवृत्ति यो से जुड़े हुए हैं और जिनकी बुद्धि माया ने घेर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
बुद्धिमान को अपनी चेतना को एकजुट करना चाहिए और फल के लिए इच्छा छोड़ देनी चाहिए।
सज्जन व्यक्तियों को सदैव अच्छा व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि इन्हीं के पद चिन्हों पर सामान्य व्यक्ति अपने रास्ते चुनता है।
निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है।
अपने अनिवार्य कार्य करो क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
इस संपूर्ण संसार में कोई भी व्यक्ति महान नहीं जन्मा होता है। बल्कि उसके कर्म उसे महान बनाते हैं।
गीता में कहा गया है कोई भी अपने कर्म से भाग नहीं सकता, कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है।
अपने कर्म का पालन करो, क्योंकि वास्तव में कर्म अकर्म से बेहतर है।
सही कर्म वह नहीं है जिसके परिणाम हमेशा सही हो अपितु सही कर्म वह है जिसका उद्देश्य कभी गलत ना हो।
इंसान हमेशा अपने भाग्य को कोसता है, यह जानते हुए भी कि भाग्य से भी ऊंचा उसका कर्म है जिसके स्वयं के हाथों में है।
बिना फल की कामना से किया गया कार्य ही सच्चा कर्म है।
ईश्वर चरण में हो समर्पण वहीं केवल धर्म है।
ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एकरूप में देखता है।
ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए।
अप्राकृतिक कारण बहुत तनाव पैदा करता है।
किसी और का काम पूर्णतः से करने से कहीं अच्छा है की अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे। इसलिए लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान मत दो।
तुम अपना कर्म करते रहो, कर्म उसे नहीं बांधता, जिसने काम का त्याग कर दिया है।
जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना।
इसलिए जो अपरिहार्य है, उस पर शोक मत करो, करो।
आत्मा किसी काल में भी ना जन्मता है और ना मरता है और ना यह एक बार होकर फिर अभाव रूप होने वाला है।
आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
जैसे मनुष्य वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही दे ही जीव आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।
जो आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसको मरा समझता है वे दोनों ही नहीं जानते है क्योंकि यह आत्मा नम्रता है और ना मारा जाता है।
वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्याग करता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है। इसमें कोई संशय नहीं है।
लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे।
सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बदतर है।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते मुझे प्राप्त किए बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगम करते हैं।
मैं उष्मा देता हूँ मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमृत भी हूँ और मृत्यु भी व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।
जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं, तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं।
याद रखना अगर बुरे लोग सिर्फ समझने से समझ जाते तो बांसुरी बजाने वाला भी कभी महाभारत होने नहीं देता।
जो बीत गया उस पर दुख क्यों करना? जो है उस पर अहंकार क्यों करना और जो आने वाला है उसका मुँह क्यों करना?
हमारी व्यर्थ की चिंता और मन का भय एक ऐस।
🙏🙌जय श्री कृष्णा 🙌🙏