रामायण के उपदेश | हिंदू पुस्तक रामायण पर प्रेरित |

हैलो दोस्तों, आज के इस लेख में हम उन सिखों की बात करेंगे जो हमें रामायण से सीखने को मिलती है।

हमारी रामायण की सिखों पर बिना समय बर्बाद किए बढ़ते हैं इतिहास के उस सबसे बड़े ग्रंथ के ज्ञान के खजाने की तरफ जो स्वयं पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की रामायण के अंदर साफ नजर आता है और इन सिखों बातों को कोई भी इंसान बड़ी आसानी से समझकर और आसानी से फॉलो कर के जीवन में वो सब पा सकता है जो वो प्राप्त करना चाहता है।

 

चाहे रिश्तों में खुशी बनाना हो, चाहे अच्छे दोस्त बनाने हो, चाहे जीने का तरीका सीखना हो, चाहे सफलता पानी हो।
या चाहे लाइफ में ग्रोथ करनी हो या चाहे अपनी जिंदगी में सब कुछ अचीव करना हो या मन को शांत करना हो, रामायण से बढ़कर कोई शांति प्रिय ग्रंथ इस दुनिया में और कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।  इसको हर परिवार में हर सदस्य के द्वारा हमेशा बढ़ाया जाना चाहिए और इससे मिलने वाली इन सिखों को हमेशा फॉलो करना चाहिए।

 

 

सीख नंबर एक – हमेशा सत्य की जीत होती है, चाहे झूठ कितना ही बड़ा हो, चाहे सत्य कितना ही कमजोर लग रहा हो।
लेकिन आखिर में जाते जाते सत्य अपनी ताकत दिखा देता है और झूठ बहुत फीका पड़ जाता है, सबके सामने आ जाता है और हार जाता है।  पूरे रामायण से केवल एक सीख निकालने को अगर आपको बोला जाये तो इस लाइन को याद रखना। इस लाइन में इसका पूरा अर्थ निकल जाता हैं की अच्छाई की बुराइ पर हमेशा जीत ही होती है। रावण बहुत बड़ा योद्धा था। उसके पास बहुत सारी ताकत थी। भगवान शिव से वरदान प्राप्त था अमर रहने का।
लेकिन उसके हारने की केवल और केवल एक वजह थी कि वो बुरा ई के साथ वो अच्छाई के साथ नहीं था।  इसलिए रावण इतना ताकतवर होकर भी श्री राम के द्वारा मारा गया।

 

 

सीख नंबर दो – हमेशा विनम्र बने रहो जब भगवान श्रीराम ने हनुमान-जी को भेजा की जाओ एक बार देख के आओ की लंका कैसी है और सीता को कहाँ रखा है तो हनुमान जी अपनी योग माया से और अपनी ताकत से माता सीता के पास पहुँच गए।
उनमें बहुत ताकत थी। पूरा पहाड़ उठा के ले आये थे। लक्ष्मण जी को बचाने के लिए तो सीता माता को तो आराम से कंधे पर बिठाकर ले आते हैं, उड़कर आ जाते लेकिन वे विनम्र बने रहें। उनका फंडा क्लिअर था की जैसा भगवान श्रीराम ने बोला है केवल वैसा ही करूँगा। वो चाहते तो उनके लिए क्या मुश्किल था? अपनी शक्ति प्रदर्शन करना पर वे विनम्र बने रहें। हनुमान जी का ये गुण हमें बहुत कुछ सीखाता है। हमने थोड़े से पैसे क्या कमा लिए कि हमारे अंदर ईगो आ जाता है, घमंड आ जाता है। और हम दिखाने में आ जाते हैं, जबकि होना क्या चाहिए? हनुमान जी की तरह विनम्र होना चाहिए।

 

 

सीख नंबर तीन – आपके निजी स्वार्थों से कहीं ज्यादा बड़ी हैं आपकी जिम्मेदारियां भगवान श्रीराम को पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है? क्योंकि श्रीराम से ज्यादा उत्तम कोई और पुरुष हैं ही नहीं इस सृष्टि में और जब वो खुद इतने उत्तम है तो फिर उन्होंने रामायण के अंत में सीता माता को
क्यों छोड़ा और सीता माता क्यों जंगल निवास में गई? उनका मानना था कि राजा और रानी वो होते हैं जिन पर उनकी प्रजा भरोसा करें, जिनपर बिल्कुल भी संदेह ना करे। बिल्कुल भी संकोच न करें। एक धोबी ने संदेह किया माता पर और भगवान राजपाट छोड़कर सीता माता के साथ जंगल जाने को तैयार हो गई दुबारा लेकिन श्रीराम इसलिए नहीं जा पाए जंगल क्योंकि उनके किसी भी छोटे भाई ने राजा बनने से इनकार कर दिया क्योंकि ये उनके धर्म के विपरीत था।
ये बड़े भाई के होते हुए हम छोटे भाई कैसे राजा बन सकते हैं? कैसे राजा बनने का सुख भोग सकते हैं? और अंत में यही हुआ की श्रीराम को ही राजा बनकर रहना पड़ा और सीता माता को छोड़ना पड़ा। इस पूरे इंसिडेंट से क्या सीखने को मिलता है की आपका निजी जीवन आपकी पर्सनल लाइफ आपकी जिम्मेदारियों से आपके रिस्पॉन्सिबिलिटीज से कभी ऊपर नहीं हो सकती? इसीलिए श्री राम पुरुषोत्तम थे।

 

सीख नंबर चार – जो हमें रामायण से मिलती है, हमेशा सबकी इज्जत करना सीखिए। जब शबरी माता ने श्रीराम को देखा
तो वो इतने आनंद में डूब गई की जब बेर खिलाने के लिए ले गयी तो ये सुनिश्चित करने के लिए यह निश्चित करने के लिए की हर बेर मीठा होना चाहिए तभी मैं श्री राम को खिलाऊंगी। अब ऐसी कोई तरीका तो है नहीं की बेर को देख के बता दो कि बेर के अंदर क्या है? मीठा है कि बेर कट्टा है, कहीं कीड़ा तो नहीं है उसमें और इसलिए वो हर बेर को पहले खुद सकती थी और फिर श्रीराम को खिलाती थी और श्रीराम सबरी माता के प्रेम में इतना मग्न हो गए कि उनको इस बात का ज़रा भी
पता नहीं पड़ा। उनको ज़रा भी आपत्ति नहीं हुई की शबरी माता उनको झूठे बेर खिला रही हैं। यह होता है बजाय हम यह देखने की कौन क्या है? हम ये देखे कि उसके मन में हमारे प्रति प्रेम कितना है और हम उसके प्रेम की इज्जत भी करें।

 

सीख नंबर पांच – जो हमें रामायण से सीखनी चाहिए परिवार में एकता का होना बहुत ज़रूरी है। परिवार के सभी सदस्यों का एकमत रहना बहुत जरूरी है, नहीं तो वो परिवार टूट जाता है और अगर वो परिवार एकजुट है, यूनाइटेड है तो फिर वो किसी भी बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना कर सकता है। राजा दशरथ अपने पुत्रों से बहुत प्यार करते थे। जब माता केकई ने श्री राम को वनवास भेजने की बात कही और वचन मांग लिया तो फिर और कोई ऑप्शन बचता नहीं की अब जंगल जाना ही पड़ेगा। श्री राम को राजा दशरथ का एक मन तो ये कह रहा था कि पुत्र को रोक ले और दूसरा मन ये कह रहा था की वचन भी दे दिया है, निभाना पड़ेगा तो भगवान राम ने कहा।
रघुकुल रीत तो सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाए ये पिताजी आपसे ही सीखा है की हमारे परिवार की परंपरा चली आयी है की भले ही प्राण चले जाये, लेकिन एक बार वचन निकल गया मुँह से दिल से मन से तो वचन का मान रखना चाहिए, उस वचन को निभाना है। भगवान राम चले गए वनवास में तो उनकी पत्नी भी उनके साथ गयी। उनका भाई लक्ष्मण उनके साथ गया। जब वो सब जंगल चले गए तो राजा दशरथ ने दुख ही दुख में अपने प्राण त्याग दिए।
जिससे पता पड़ता है की वो कितना प्रेम करते थे। अपने पुत्र से कितना प्रेम था उनके परिवार में और जब दशरथ स्वर्ग चले गए तो अब राजा कौन बने? कायदे से तो श्रीराम को बनना चाहिए, वो है नहीं तो उनके बाद में जो बड़ा भाई है वो बनेगा। लक्ष्मण जी भी नहीं है।